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Showing posts from April 17, 2016
निरंतर बहाव ही जीवन है। 
परिस्तिथियों को स्वीकार कर प्रसन्न रहें या उन पर विलाप करें। चुनाव आपके हाथ में है। 
यदि आप स्वयं के मित्र हैं तो आप सभी के मित्र बन सकते हैं। 
कई बार हम समस्या को इतना बड़ा कर के देखते हैं कि उनके अव्यवहारिक समाधान ढूंढ़ते हैं। 
यदि आप स्वयं को स्वीकार नहीं करेंगे तो दूसरे भी आपको स्वीकार नहीं करेंगे।