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Showing posts from 2012
नव वर्ष एक कोरे कागज़ की भांति है जिस पर समय नई इबारत लिखेगा। देखते हैं आगे क्या होगा।
समय की पुस्तक में एक और अध्याय का अंत होने जा रहा है। इससे जो भी सीखा उसे लेकर आगे बढें।
समाज हमसे बनता है अतः कोई भी परिवर्तन तभी होगा जब हम बदलेंगे।
समाज के हित में अपने निजी स्वार्थों का बलिदान ही एक सशक्त समाज को जन्म देता है।
क्षमा का भाव हमें महान बनाता है।
करुणा का भाव हमारे ह्रदय को पवित्र करता है।
यदि हम सबसे प्रेम करना सीख लें तो सम्पूर्ण संसार एक घर बन जायेगा।
प्रेम, दया,  क्षम, त्याग प्रभु  ईसा मशीह की  शिक्षाएं हैं। हमें इन पर अमल करना चाहिए।
जो स्वयं पर यकीन नहीं करता वह किसी पर यकीन नहीं करता।
हम जो कुछ संसार से चाहते हैं उसे अपने भीतर तलाशना चाहिए।
अपने ह्रदय की गहराइयों में झाँकें आपको परम शांति मिलेगी।
बिना लड़े हार मानने से कहीं बेहतर है  लड़ कर हारना।
प्रकृति एक स्नेहमयी माँ की तरह हमारे  जीवन की आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करती है, अतः उसकी रक्षा करना हमारा कर्त्तव्य है।
जब आस्था हमारे जीवन का केंद्र बिंदु हो तो हमें किसी भी परिस्तिथि से नहीं घबराना चाहिए।
जब हम कमज़ोर पड़ते हैं हमारी आस्था हमें भटकने से रोकती है।
आशा एक छोटा सा शब्द हमें जीवन में आगे ले जाता है।
जब अँधेरा हो तो घबराओ मत शीघ्र ही सुबह होगी।
विश्वास से ही कोई विचार वास्तविकता में बदलता है।
यदि असफल हो जाओ तो हताश न हो फिर से प्रयास करो।
स्वयं पर विश्वास करें  तभी आप अपनी मदद कर सकते हैं।
जब हमारे पास किसी वास्तु की कमी होती है तो हम उसके प्रति सावधान हो जाते हैं और उसका सदुपयोग करते हैं।
जो व्यक्ति अपने भूतकाल से सबक लेकर वर्तमान में परिश्रम करता है वह अच्छे भविष्य को प्राप्त करता है।
जीवन की अनिश्चितता इसे और रोचक बनाती है। भविष्य में कुछ भी निश्चित नहीं फिर भ हम बेहतर कल के बारे में सोंचते हैं।
जब तक हम समस्याओं से भागते हैं वे हमारे पीछे पड़ी रहती हैं किन्तु जब हम उनका सामना करते हैं वे भाग जाती हैं।
भूतकाल पर रोने से सिर्फ वर्तमान खराब होता है।
जीवन में कुछ प्रश्नों के उत्तर सिर्फ समय ही दे सकता है। अतः उनके विषय में अधिक न सोंचें।
जीवन गुलाब के फूल की तरह है। कभी पंखुड़ियों की कोमलता है तो कभी काँटों की चुभन।
प्रसन्न रहने का कारण न खोजें। सदैव प्रसन्न रहना सीखें।
जीवन उतर चढ़ाव की एक श्रृंखला है। निराशा के बाद आशा आती है।
कल्पना एक शक्ति है जो वस्तुओं को मूर्त रूप देती है।
जो भी आपके पास है  ईश्वर की देन है  उसका आभार मानें।
सत्यता, स्पष्टता, सततता और ईमानदारी चार स्तम्भ हैं जिन पर सफलता टिकी होती है।
वह व्यक्ति जो घोर निराशा के दौर में भी उम्मीद का दामन थामे रहता है वह सच्चा योद्धा है।
आत्म दया एक गहरी खाई है जिसमें से निकलना कठिन है।
स्वयं पर विश्वास करना सीखें यह आपको जीवन में आगे ले जाता है।
आस्था हमें कठिन समय में बल प्रदान करती है।
ऐसा नहीं की आदर्श व्यक्ति में कोई कमी नहीं होती वह आदर्श है क्योंकि वह अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास करता है।
जब आप  स्वयं को उपेक्षित महसूस करें तो याद रखें ईश्वर सदैव आपके साथ है।
दृष्टिकोण में परिवर्तन संसार में बदलाव लाता है।
जब भी हम जीवन में कोई बाधा पार करते हैं स्वयं को पहले से अधिक मज़बूत पाते हैं।
जब भी हम पीड़ा महसूस करते हैं तो हमारी आँखों में आंसू आते हैं। दूसरों की पीड़ा में बहे आंसू ह्रदय को पवित्र करते हैं किन्तु स्वयं की पीड़ा में बहे आंसू दिल दुखाते हैं।
एक सफल जीवन के लिए सर्वाधिक ज़रूरी वस्तु है हर परिस्तिथि में आगे बढ़ने की चाह।
पीड़ा से संघर्ष की राह निकलती है।
हम सभी के भीतर अपने नकारात्मक पहलुओं को सकारात्मक बनाने की क्षमता है।
अक्सर हम मंजिल के नज़दीक पहुँच कर हिम्मत हार जाते हैं।
जो भी कार्य हमें मिले मन लगाकर करें। हर कार्य ईश्वर प्रदत्त है।
आस्था का बीज अपने मन में बोयें समय के साथ इसे पोषित होने दें। धीरे धीरे यह वृक्ष में बदल जायेगा।
जीवन की सफलता का मूल मन्त्र है जीवन के सभी पहलुओं में संतुलन।

बाल दिवस

प्यारे बच्चों 14 नवम्बर को हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्मदिन मनाया जाता है। उन्हें बच्चों   से बहुत प्रेम था। बच्चे उन्हें  प्यार से 'चाचा नेहरु' कहकर बुलाते थे। अतः उनके जन्मदिन को 'बाल  दिवस' के रूप में मनाते हैं। पंडित नेहरू का जन्म एक संपन्न घराने में हुआ था। किन्तु सारे ऐश्वर्य को त्याग कर उन्होंने स्वयं को देश के स्वाधीनता संग्राम के लिए समर्पित कर दिया। देश का प्रथम प्रधानमंत्री बनाने के बाद उन्होंने देश के विकास को नई दिशा दी। उनका सपना एक ऐसे भारत के निर्माण का था जो आर्थिक एवं वैज्ञानिक तौर पर सक्षम हो। पंडित नेहरू एक अच्छे लेखक भी थे। अंग्रेजी भाषा पर उनकी अच्छी पकड़ थी। उनकी प्रमुख रचनाओं में "भारत एक खोज" का महत्वपूर्ण स्थान है यह पुस्तक भारतवर्ष के इतिहास की अच्छी झांकी पेश करती है।
बचपन जीवन का सुनहरा हिस्सा है। समय के साथ साथ हमारी मासूमियत कहीं खो जाती है। हम सभी के भीतर एक बच्चा छुपा है। चलो उसे ढूंढ निकालें।
प्रकाश का स्रोत आपके भीतर है। अपने भीतर झांकें।
दीपों की लड़ियाँ           पठाखे फुलझड़ियाँ  खील बताशे मिठाई           आई दिवाली आई  चलो दीप जलाएं            घर को सजाएँ  चारों दिशाओं को              रौशन  बनायें  आओ मिलकर              दिवाली मनाएं।        दीपावली की शुभ कामनाएं।
जीवन का उद्देश्य अन्धकार से प्रकाश की ओर बढ़ना है। हम अपने जीवन से समस्त अन्धकार मिटने का प्रयास करें।
एक मुस्कुराता चेहरा रौशनी फैलता है। मुस्कुराइए।
उम्मीद उस प्रकाश किरण के समान है जो निराशा के अंधकार को मिटा देती है।
धैर्य हमें कठिनायों में भी लड़ने को प्रेरित करता है।
यह संसार एक दलदल है। हमारी आस्था हमें ठोस धरातल प्रदान करती है।
मोर और गिद्ध  एक जंगल में एक मोर और एक गिद्ध रहते थे। दोनों एक दूसरे के पडोसी थे। मोर को अपनी सुन्दरता पर बहुत घमंड था। अक्सर गिद्ध से कहता रहता था " देखो मैं कितना सुंदर हूँ , जब मैं अपने खूबसूरत परों को फैला कर नृत्य करता हूँ तो सब मुग्ध हो जाते हैं। तुम्हारे पास क्या है।" गिद्ध कुछ नहीं बोलता था। एक दिन गिद्ध ने देखा की मोर उदास बैठा है। उसने पास जाकर कारण पूंछा। मोर रोते हुए बोला " मेरा भाई आज सुबह से नहीं मिल रहा है। बिना बताये जाने कहाँ चला गया है। मैं तो अधिक ऊंचा उड़ भी नहीं सकता। कैसे खोजूं उसे।" गिद्ध बोला "बस इतनी सी बात मैं खूब ऊंचा उड़ भी सकता हूँ और दूर तक देख भी सकता हूँ। मैं अभी तुम्हारे भाई को खोज कर लाता हूँ।" यह कह कर वह उपर आकाश में चला गया। कुछ ही आगे जाने पर उसने देखा की मोर का भाई तालाब के पास घायल पड़ा है। उसने सब को सूचना दी। मोर तथा जंगल के अन्य प्राणियों ने वहाँ पहुँच कर घायल मोर को प्राथमिक उपचार दिया।  मोर अपने बर्ताव पर शर्मिंदा था। गिद्ध से क्षमा मंगाते हुए बोला " मैं बहुत शर्मिंदा हूँ। मुझे माफ़ कर दो। मैं समझ गय
सकारात्मकता कठिन परस्थितियों में भी धैर्य बनाये रखना है।
वर्तमान समय में नई  एवं पुरानी पीढ़ी के बीच वैचारिक मतभेद अधिक बढ़ गया है। नई पीढ़ी का मानना है की बुजुर्गों की सोंच दकियानूसी है अतः  वे उनकी कही बातों से इत्तेफाक नहीं रखते। वहीँ बुजुर्गों का सोंचना है की युवा पीढ़ी आत्मकेंद्रित एवं स्वार्थी है अतः वे केवल अपने विषय में ही सोंचा सकते हैं। आवश्यकता दोनों पीढ़ियों के बीच वैचारिक  सामंजस्य बिठाने की है। परिवर्तन सृष्टि का नियम है। कोई भी समाज विचारों में परिवर्तन लाये बिना अधिक समय  तक नहीं ठहर सकता है। हर नई   पीढ़ी अपने साथ विचारों का परिवर्तन लाती है। पुरानी पीढ़ी के लिए इन परिवर्तनों के साथ सामंजस्य बिठाना कठिन होता है।उन्हें लगता है की नए विचार उनके पूर्वनिर्धारित संस्कारों पर आघात हैं। जबकि यह हर बार सही नहीं होता। उन्हें समझाना चाहिए की जो पुराने वक़्त में सही था आवश्यक नहीं वह आज भी सही हो। अतः उन्हें नए विचारों को अपनाने को तैयार रहना चाहिए। युवा वर्ग को भी समझाना चाहिए की बुजुर्गों की हर बात के पीछे उनका वर्षों का तज़ुर्बा छिपा है अतः उन्हें अनसुनी नहीं करना चाहिए। यदि वे किसी बात पर एकमत नहीं हैं तो भी उन्हें अपनी बात इस 
ईश्वर पर आस्था हमें कठिनाईयों से लड़ने का आत्मविश्वास देती है।
दिए के समान बनो जो दूसरों को रौशनी देता है।
दूसरे आपके बारे में क्या सोंचते हैं इससे आधिक महत्वपूर्ण आपकी अपने बारे में राय है।
जब तक हम हारते नहीं उम्मीद है।
आप जिस दृष्टि से दुनिया को देखते हैं वह वैसी ही आपके सामने आती है।
प्रेम, शांति, आनंद, संतुष्टि, पवित्रता सभी कुछ हमारे भीतर है। वहीँ इन्हें प्राप्त करें।
रचनात्मकता हमें अपने हृदय के भाव व्यक्त करने में मदद  करती है। यह हमें सृजन का सुख देती है। अतः स्वयं को रचनात्मक कार्यों में लगायें।
जो आप हैं वही सबसे अच्छे हैं। दूसरों की नक़ल न करें।
हर व्यक्ति की अपनी पीड़ा होती है किन्तु जो दूसरों की पीड़ा अनुभव करता  है वह सुख से रह सकता है।
कठिनाईयां हमें हमारे भीतर छुपी हिम्मत से रूबरू कराती हैं।
हम सभी के भीतर छुपा खज़ाना है उसे तलाश करें।
अपने आपको हीन न समझें हम सभी में अपने गुण हैं।
जो स्वयं से अप्रसन्न है वह दुनिया से कैसे खुश रह सकता है।

रावण वध

छुट्टी का दिन था । मैं आराम से चाय की चुस्कियां लेते हुए अखबार पढ़ रहा था। वही पुरानी  खबरें हत्या, लूटपाट, अपहरण, पोलिटिकल स्कैम्स। सिर्फ हेडलाइंस पढ़कर अखबार बंद कर दिया। तभी मेरा पाँच वर्ष का बेटा  मोहन मेरे पास आकर बैठ गया और बोला " पापा आज क्या है।" मैंने समझाते हुए कहा " आज दशहरा है। आज के दिन भगवान् रामचंद्र ने रावण  का वध कर के बुराई  का अंत किया था।" मोहन ने पूंछा " रावण क्या बुरा इंसान था।" मैंने कहा " हाँ वह एक बुरा इंसान था। इसी लिए आज के दिन बुराई के प्रतीक रावण , कुंभकर्ण, एवं मेघनाथ के पुतले जलाते हैं। ताकि बुराई  का नाश हो।" मोहन बहुत ध्यान से मेरी बातें सुन रहा था।  कुछ देर कुछ सोचने की मुद्रा में बैठा रहा फिर बोला " अच्छा, तो क्या पुतले जलाने से बुराई  ख़त्म हो जाती है।" मैं अवाक् रह गया उस मासूम ने कितना प्रासंगिक प्रश्न किया था। सैकड़ों वर्षों से हम सिर्फ प्रतीकों को ही जला रहे हैं। जब की ज़रुरत अपने भीतर बसे रावण का वध करने की है।
हम सभी के भीतर अच्छाई और बुराई का संघर्ष जारी है। कभी बुराई  अच्छाई  को दबा देती है तो कभी अच्छाई  हावी हो जाती है। अंत में अच्छाई  बुराई का नाश कर देती है। तब हमें मुक्ति प्राप्त होती है।
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कुछ पल जो एकांत में स्वयं के साथ बिताये जाते हैं हमें तरोताज़ा कर देते हैं। इन पलों का आनंद लें।
कठिनाईयां आपको अपने भीतर की क्षमताओं का सही उपयोग सिखाती हैं। आपको एक मजबूत व्यक्ति बनाती हैं।
हर व्यक्ति में कुछ विशिष्टता होती है। उसे खोजें।
बिना उत्साह के कुछ भी महान नहीं किया जा सकता।
जो आपने लक्ष्य पर दृष्टि रखते हैं उन्हें कोई राह से भटका नहीं सकता।
जीवन आने वाले कल का हिसाब लगाने के लिए नहीं वरन आज की तस्वीर बनाने के लिए है।
आंतरिक प्रसन्नता हमें शक्ति देती है की हम दूसरों का भला कर सकें और समाज को कुछ नया प्रदान करें।
कोई भी अंतर्दृष्टि यदि बार बार दोहराई  जाये तो मस्तिष्क में अंकित हो जाती है।
आंतरिक प्रसन्नता हमारे भीतर छुपी प्रतिभा को बाहर निकालती है।
अपने आप को ईश्वर को समर्पित कर निश्चिंत रहें।
ईश्वर अनुभव की वस्तु है न की वर्णन की इसी कारण महात्मा पुरुष ईश्वर का वर्णन करने में सदैव ही शब्दों को अपूर्ण पाते हैं।
हमारे कार्य हमारे शब्दों से अधिक प्रभावशाली होते हैं।
जो क्षण आपके हाथ  में है वह बहुमूल्य है। इसका सदुपयोग करें, इसे व्यर्थ न गवाएं।
कुछ खोजने के लिए हमें नयी दृष्टि का विकास करना पड़ता है।
ईर्ष्या बहुत हानिकारक है। यह नकारात्मकता को जन्म देती है और विकास में बाधक होती है।
समस्याओं का समाधान उन्हीं में छिपा होता है।
यदि हम पूर्ण रूप से ईश्वर के प्रति  समर्पित हैं तो कठिनाईयों से नहीं हारेंगे।
असत्य का नाग केवल सत्य की लाठी से मर सकता है।
निष्क्रिय व्यक्ति का जीवन ठहरे पानी की तरह होता है जिसमें से दुर्गन्ध आती है।
एक कृतघ्न व्यक्ति के लिए कृतज्ञता पानी की उस बूँद की भांति है जो गर्म तवे पर गिर कर उड़ जाती है।
प्रसन्नचित व्यक्ति अधिक सृजनात्मक होता है।
ईश्वर का आभार मानना ही प्रार्थना है।
कुछ अभद्र शब्द आपके व्यक्तित्व पर दाग लगा देते हैं।
एक राज्य था। वहां की प्रजा को पहली बार यह अधिकार मिला की वह अपना राजा  स्वयं चुने। प्रजा बहुत प्रसन्न थी। राज्य के दो उत्तराधिकारी थे एक "आपनाथ" और दूजे "सांपनाथ". पहले चुनाव का समय आया दोनों प्रत्याशियों ने जनता को रिझाने की पुरजोर कोशिश की। जनता से बड़े बड़े वादे किये किन्तु आपनाथ ने बाजी मार ली। जनता बेहद खुश थी की अब उसके दिन बदलेंगे किन्तु गद्दी पर बैठते ही आपनाथ प्रजा को भूल गए। आपनाथ  की नज़र राजकीय कोष पर पड़ी। उन्होंने दोनों हाथों से उसे लुटाना आरम्भ कर दिया। आपनाथ और उनके सगे सम्बन्धियों के दिन बदल गए। सूखी रोटी को तरसने वाले मलाई खाने लगे। जनता दो वक़्त की रोटी को त्राहि त्राहि करने लगी। सांपनाथ ने जनता के हित में बहुत आंसू बहाए और आपनाथ  और उनकी नीतियों का कड़ा विरोध किया। प्रजा को लगा की उनसे भारी भूल हो गयी। उनका परम हितैषी तो सांपनाथ है। जनता उस दिन की प्रतीक्षा करने लगी जब आपनाथ को हटा कर सांपनाथ को गद्दी पर बिठा सके। जल्द ही वो समय भी आया। इस बार प्रजा ने सांपनाथ को चुना। एक बार फिर प्रजा सुखद भविष्य के सपने देखने लगी। गद्दी पर बैठते ही सांपनाथ का भ
विश्वास की कमी हमें हराती है, अतः ईश्वर में विश्वास को मजबूत करें।
अच्छे कर्मों को छोड़ कर कुछ भी लम्बे समय तक नहीं रहता है।
अथक प्रयास कठिनाईयों को थका देते हैं।
मौन वाणी से अधिक सिखाता है। मौन को सुनने का प्रयास करें।
दफ्तर से निकल कर निखिल टहलते हुए बस स्टैंड की तरफ चल दिया। बस के आने में अभी समय था। सड़क के किनारे मज़मा लगा देख कर वह भीड़ में घुस गया। एक मदारी बन्दर का नाच  दिखा रहा था। मदारी डुग डुगी बजाता था और रस्सी से बंधा बन्दर बंदरिया का जोड़ा उसके इशारे पर ठुमक ठुमक कर नाच रहा था। बच्चे ताली बजाकर इस तमाशे का आनंद ले रहे थे। थोड़ी देर में तमाशा ख़त्म हो गया। सबने मदारी को पैसे दिए और अपनी अपनी राह चल दिए। निखिल ने भी दस रुपये का नोट मदारी को दिया और बस स्टैंड पर खड़ा होकर बस की प्रतीक्षा करने लगा। वहां खड़े खड़े एक अजीब सा ख्याल उसके मन में आया। उस में और मदारी के बन्दर में फ़र्क  ही क्या है। बन्दर की तरह वह भी तो कभी घरवालों तो कभी अपने बॉस के इशारे पर नाचता रहता है। यह विचार आते ही बन्दर के लिए उसके मन में सहानुभूति जाग उठी।
अपनी गल्ती मान लेने का अर्थ उसे आधा ठीक कर लेना है।
सफल होना कठिन है किन्तु  सफलता को  बरक़रार रखना और भी मुश्किल है।
इस श्रृष्टि में केवल ईश्वर ही पाने योग्य हैं । वह हमें अपनी शरण में आने की प्रेरणा देते हैं।
खुले विचार सकारात्मकता प्रदान करते हैं जो हमारे  आत्म बल को बढ़ाते  हैं।
सही दिशा में किया गया परिवर्तन आप को प्रगति की राह पर ले जाता है।
अल्लाह उनके साथ है जो धैर्य पूर्वक सहन करते हैं।
कटु वचन नुकीले बाणों से अधिक चोट करते हैं।
प्रभु के चरणों में पूर्ण समर्पण मानसिक शांति देता है।
विनम्रता आपको लोकप्रिय बनती है।
हमारे विचार हमारा दर्पण हैं जिस में हमारा व्यक्तित्व नज़र आता है।
विचारों को व्यक्त करने की आज़ादी वहीँ तक अच्छी है जहाँ तक सीमाओं का उलंघन न हो।
हिंदी हमारी मातृभाषा है। यह जन साधारण की भाषा है। इस बहुभाषी देश को जोड़ने का काम हिंदी ही कर सकती है। जय हिंद।
चिंता हमारी सोंच को दूषित कर हमें कायर बना देती है।
रिश्तों की  हमें उसी प्रकार देखभाल करनी पड़ती है जैसे की पौधों की। उन्हें प्रेम से सींचना पड़ता है ताकि वे मुरझा न जाएँ।
भविष्य के लिए सबसे अच्छा विनियोग है बच्चों में सदगुण पोषित करना।
ज़रूरतें पूरी हो सकती हैं इच्छाएं नहीं।
साहस  के द्वारा असंभव भी संभव हो जाता है।
बिना पहले पायदान पर कदम रखे कोई ऊपर नहीं पहुँच सकता है।
प्रार्थना वह डोर  है जो हमें इश्वर से बांधती है। यह हमारे ह्रदय को शुद्ध कर हमें आध्यात्मिक बल प्रदान कराती है।
जब हमारे साथ कुछ अच्छा होता है हम खुश होते हैं परन्तु जब हम दूसरों का भला करते हैं तो हमें पूर्ण संतोष मिलता है।
एक शिक्षक का कार्य केवल पढ़ाना ही नहीं होता बल्कि अपने शिष्य में सीखने की लालसा जगाना भी होता है। वह अपने शिष्य को जीवन के मूल्य सिखा कर उनका चरित्र निर्माण करता है ताकि वे जिम्मेदार व्यक्ति बन सकें।
यदि हम वर्तमानं में सही प्रकार से काम करें तो भविष्य में सब ठीक होगा।
हमारे छोटे छोटे प्रयास महत्व रखते हैं, छोटे छोटे कदम ही हमें मंजिल तक पहुंचाते हैं।
हमें वो अवश्य करना चाहिए जो हम कर सकते हैं। किसी भी कीमत पर हमें बेकार नहीं रहना चाहिए।
अवसर जब भी आयें हमें उनके स्वागत को तैयार रहना चाहिए।
हमारे कार्य हमारे विचारों को सही प्रकार प्रचारित करते हैं।
कभी कभी एक ठोकर हमें सही दिशा दिखा देती है।
केवल विचार प्रभावी नहीं होते उन्हें कर्म क्षेत्र  में उतारना आवश्यक है।
 ज्ञान की उपियोगिता तभी है जब हम उसे अपने आचरण में लायें.
हमारी असफलता हमें सफलता से अधिक सिखाती है.
यदि आप अनुभव करें की जीवन में अवरोध उत्पन्न हो रहा है और आप को परिवर्तन चाहिए तो अपने कर्मों की दिशा बदलिए.
समस्या होने पर परिस्तिथि की आलोचना न करें उससे उबरने का उपाय सोंचे.
शारीरिक शक्ति के बल पर हम कार्यों का संचालन करते हैं किन्तु आत्मिक शक्ति के बल पर असम्भव प्रतीत होने वाले कार्य भी संभव हो जाते हैं.
हमारे छोटे छोटे प्रयास ही समाज में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाते हैं.
हम मानसिक तौर पर जितना उपर उठेंगे उतना ही हमारा दृष्टिकोण वृहद् होगा.
दृष्टिकोण में परिवर्तन एक बड़े परिवर्तन की शुरुआत है.
प्रलोभनों पर विजय पाकर हम अच्छी आदतों का विकास कर सकते हैं.
हमारे भीतर गुणों एवं अवगुणों का एक संघर्ष जारी है. यह तब तक चलेगा जब तक हम अवगुणों पर पूर्ण विजय  प्राप्त न  कर लें.
जो अपनी आत्मा में रमण करता है वह सदैव पूर्ण आनंद में रहता है.
हमारी दृष्टि केवल आवरण{काया}  देखती है उसके पीछे के मूलतत्व{आत्मा} को नहीं. यही दृष्टि भेद उत्पन्न करती  है.
धर्म ईश्वर के करीब ले जाकर हमें एक करने के लिए है, हमे पृथक करने के लिए नहीं.
स्वतंत्रता हमें जीवन में आगे बढ़ने का अवसर देती है , अपने मानदंडों पर जीने का अधिकार देती है , ज्ञान अर्जित करने का मौका देती है. इसे महसूस करें और इसकी कद्र करें. जय हिंद.
भविष्य में सुखों की फसल काटने के लिए वर्तमान में अच्छे कर्मों के बीज बोने पड़ते हैं.
जो आप चाहते हैं उसे अपने भीतर खोजने का प्रयास करें.
कुछ सीखने का अर्थ है  उस गुण को बाहर लाना जो पहले से ही हमारे भीतर विद्यमान है.
आस्था हमें आशावादी दृष्टिकोण देती है जो हमें जीवन  में आगे ले जाता है.
कोई भी ईश्वर से नहीं मिला सकता है, ईश्वर निज  अनुभव से प्राप्त होते हैं.
सफल होने के लिए ज़रूरी है की  हम गुणों का विकास करने  के साथ साथ अपने नकारात्मक पहलुओं पर भी ध्यान दें.
सही अवसर का इंतजार न करें जो भी कार्य हाथ में है उसे सही प्रकार से करें.
साहस वह गुण है जिसके बिना बाक़ी  सभी गुण प्रभावहीन हैं.
दृढ़ता और धैर्य के साथ बड़ी से बड़ी चुनौती को पार किया जा सकता है.
चुनौती समस्याओं से बचने में  नहीं वरन उनका सामना  करने में है.
आत्म विश्वास बहिर्मुखी होता है यह हमारे कार्यों  में झलकता है.
हमारे अनुभव हमें बहुत कुछ सिखाते हैं , यदि हम सीखने  को तैयार हों.
उम्मीद प्रकाश की एक किरण है जो दिल का कोना कोना रोशन कर देती है.
 कठिनाइयों के द्वारा समय हमारी सहनशक्ति को परखता है. जितना हम कठिनाईयाँ सहन करेंगे उतना मजबूत बनेंगे.
प्रसन्नता बाहर नहीं मन के भीतर है.
आस्था आत्मा की शक्ति है.कमजोर आत्मबल वाला  व्यक्ति आस्तिक नहीं हो सकता है.
आस्था और विश्वास कठिन समय का संबल हैं.
कठिनाइयाँ जीवन को आकार देती हैं सुगमता नहीं.
हमें वही मिलाता है जो हम दूसरों को देने को तैयार हों.
सकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाला व्यक्ति बाधाओं के पार छुपे अवसर देखता है.
कोई भी बड़ी सफलता कई असफल प्रयासों का परिणाम होती है अतः असफलता से मायूस न हों. प्रयास जारी रखें.
समय के थपेड़े हमें वो परिवतन देते हैं जो हमारे विकास के लिए आवश्यक हैं.
सकारात्मक सोंच बाधाओं को भी अवसर में बदल देती है.
जो विश्वास करता है वही पाता है. अविश्वासी के हाथ कुछ नहीं लगता है.
चाहे कितनी कठिन परिस्तिथि हो हमारे पूर्ण आस्था में किये गए प्रयास व्यर्थ नहीं जाते हैं.
यदि हम सच्चे मन से कुछ करने का प्रयास करते हैं तो ईश्वर हमें उचित बुद्धि और शक्ति प्रदान करते हैं.
भौतिकतावादी दृष्टिकोण से आध्यात्मिकता को नहीं समझा जा सकता है. बोतल को बाहर से चांट कर शहद का स्वाद नहीं मिलता है.
जो ईश्वर की शक्ति में  पूर्ण विश्वास रखता है वह "असम्भव"  शब्द  में यकीन नहीं करता.
ईश्वर को समर्पित सारे प्रयास सफल होते हैं.
समस्याओं से भागें नहीं. साहस और धैर्य से उनका सामना करें.
ईश्वर सदैव हमारे साथ हैं . यदि हम पूर्णतया उन  पर समर्पित रहें तो वह हमारी सहायता करेंगे.
ईश्वर में आस्था हमें बड़ी से बड़ी बाधा को पार करने की हिम्मत देती है.
जब कुछ न सूझे तो स्वयं को ईश्वर के आधीन कर दें वही आपको सही राह दिखाएंगे.
जिस प्रकार नदियाँ सागर की तरफ बढ़ती हैं हम ईश्वर की तरफ बढ़ रहे हैं.
सब कुछ ईश्वर पर छोड़कर जो भी सामने आये उसका साहस पूर्वक सामना करो.
जो बाधाओं को पार करने का प्रयास करते हैं ईश्वर उनकी सहायता करते हैं.
जब कोई राह सुझाई न दे तो अपने मन की आवाज़ सुनो और आगे बढ़ो.शीघ्र ही कोई राह मिलेगी. किन्तु किसी भी हाल में धैर्य न छोडें.
सृजनात्मकता आप को सकारात्मक सोंच देती है. जब आप कुछ सृजन करते हैं तो उसमे इतना खो जाते हैं की बाकी सब भूल जाते हैं.
धर्म ग्रन्थ केवल ईश्वर तक जाने का मार्ग बताते हैं किन्तु उस मार्ग पर कदम बढ़ाये बिना हम ईश्वर तक नहीं पहुँच सकते.
जो पीड़ा सहन करता है वो ही ख़ुशी प्राप्त करता है.
आपके पास क्या और कितना है यह माने नहीं रखता, माने रखता है की आप उसे अपने विकास में किस प्रकार प्रयोग करते हैं.
कुछ नया करने पर प्रारंभ में हमें परेशानी होती है किन्तु यदि हम धैर्य रखें तो बाद में अच्छाइयों का पता लगता है .अतः धैर्य रखें.
चाहे कितनी कठिन परिस्तिथि हो साहस न छोड़ो. एक दिया भी आंधी से लड़ता है.
जीवन तुक्ष बातों में गुजारने के लिए नहीं है बल्कि ईश्वर प्राप्ति के लिए है.
जो भी ईश्वर से मिले उसके लिए आभार व्यक्त करें यदि ईश्वर कठिनाईयां देता है तो उनसे उबरने की राह भी दिखाता है.
हर वस्तु को ईश्वर से जोड़ना ही अध्यात्म है.
दृढ आस्था चिंता मुक्त कर देती है और शांति प्रदान करती है.
यह प्रकृति एक कला दीर्घा है जहाँ सर्व श्रेष्ठ कलाकार ईश्वर ने अपनी प्रदर्शनी लगाई है.
प्रकृति को हम जितना देते हैं उस से कहीं अधिक पाते हैं. यदि हम एक बीज बोते हैं तो प्रकृति हमें पेड़ देती है जो हमें छाया, फल और लकड़ी देता है.
यदि हम बिना शिकायत के आने वाले कष्टों को सह लें तो ईश्वर हमें खुशियाँ  अवश्य देंगे.
जीवन एक पहेली है. जब हम यह समझते हैं की इसे हल कर लिया है तो यह नए सवाल खड़े कर देती है.
अच्छाई पर यकीन रखें.यदि आप अच्छे हैं तो आप को हर जगह अच्छाई नज़र आयेगी.
नदी के रास्ते में चाहें कितनी रुकावटें आएं उसका बहाव नहीं थमता. इसी तरह हमें भी बाधाओं से विचलित हुए बिना आगे बढ़ना चाहिए.
धैर्य, सहनशक्ति, और सकारात्मक सोंच विपरीत परिस्तिथियों को भी अनुकूल बना सकती है.
ईश्वर पर आस्था मनुष्य को अकल्पनीय  बाधाओं को पार करने की प्रेरणा देती है.
धैर्य, दृढ़ता, और प्रार्थना, सारी बाधाओं को हटा देती है.
न अधिक पाने की चाह करो न जो खो गया उसका अफ़सोस करो.जो है उसमें खुश रहो.
चिंता करना समस्या का हल नहीं है. इससे समस्या बढ़ती है. शांत रहें और अपनी  सोंच सकारात्मक रखें.
इस दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है अतः बुरा दौर भी गुज़र जायेगा . सिर्फ थोड़े धैर्य और विवेक से काम लेने की ज़रुरत है.
आस्था से बढ़कर कुछ नहीं है, यह हमें मुसीबतों का डट कर सामना करने में मदद करती है.
ईश्वर पर पूर्ण आस्था रखते हुए सदैव आशावान रहें. यह आपको जीवन में आगे ले जाएगा.
जीवन को परिस्तिथियों के अनुसार ढालें जिस से जीवन को  सकारात्मक रूप से जिया जा सके.
वास्तविक ज्ञान वह है जो विविधता में एकता का दर्शन कराए.
जीवन उन्हें पुरस्कार देता है जो उसकी चुनौतियों का साहस पूर्वक सामना करता है.
यदि हम समस्याओं के बारे में अधिक न सोंचे तो बहुत सी समस्याएं हल हो सकती हैं.

आस

सब कहते हैं की वो नहीं आएगा. उसने वहां किसी गोरी मेम से ब्याह कर लिया है, अच्छी नौकरी है, अपना घर है, वहां का एशो आराम छोड़कर यहाँ क्या करने आएगा? फिर भी हर आहट पर इस बूढ़े जिस्म में झुर झुरी सी दौड़ जाती है. मन छोटे बच्चे सा उछलने लगता है जिसे खिलौना लेकर बाज़ार से लौटते पिता का इंतजार हो. दस बरसों से आँखें उसे देखने को तरस रही हैं. उसका माथा चूमने को होठ प्यासे हैं जिसे सहलाकर उसकी पीड़ा हर लेती थी. हथेलियाँ उन गालों को भर लेने को बेताब हैं जिन पर कभी पांचों उँगलियों की छाप बनाई थी ताकि उसे भटकने से रोक सकूं. उसे छाती से लगाने की चाह है जिसका दूध पिलाकर उसे पाला था. दुनिया का क्या है कुछ भी बोलती है. पर मैंने तो कोख से जना है फिर मैं क्यों आस छोड़ दूं?
जो ऊंचा उड़ना चाहते हैं उन्हें पैरों के नीचे की ज़मीन छोड़नी पड़ती है.
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
जीवन में यदि समस्याएं आती हैं तो जीवन ही उसका हल भी देता है. किन्तु हम समस्या से इतने भयभीत हो जाते हैं की उनकी तरफ ध्यान ही नहीं देते.
कोई भी अपना भूत काल नहीं बदल सकता है किन्तु वर्तमान में सोंच का परिवर्तन भविष्य में बड़ा बदलाव लाता है.
आस्था जीवन का मूल आधार है. इसके बिना जीवन का ढांचा खड़ा नहीं रह सकता है.

भोर

  घर के आँगन में एक नन्ही सी लड़की किलकारियां मार रही थी. ठुमक ठुमक कर पूरे आँगन में घूम रही थी. अचानक ही प्रश्न भरी निगाहों से देखते हुए बोली " ऐसा क्यों कर रही हो ? क्या मैं तुम्हारा अंश नहीं ? मुझे भी तो तुमने अपने रक्त से सींचा है . तो फिर क्यों ? सिर्फ इसलिए की मैं एक लड़की हूँ." वसुधा की आँख खुल गयी. पसीने से पूरी तरह भीगी हुई थी. कुछ देर तक बिस्तर में बैठी सपने के बारे में सोंचती रही.फिर ताज़ी हवा खाने बालकनी में आ गयी.  चिड़ियाँ चह चहा रही थीं . आसमान  में एक रक्तिम लकीर जल्द ही सवेरा होने की सूचना दे रही थी. किन्तु उसके मन में निर्णय का सूर्य निकल आया था वह अपनी बच्ची को जन्म देगी.
दृढ़ आस्था कभी निराश नहीं करती है.
जिस प्रकार प्रकाश अंधकार दूर कर देता है उसी प्रकार दृढ़ आस्था सारे संशय मिटा देती है.
ईश्वर पर पूर्ण आस्था रखने वाला सदैव भय मुक्त और प्रसन्न रहता है.
जो भी जीवन में मिले उसे बिना शिकायत के स्वीकार करो. उतार चढ़ाव जीवन का हिस्सा है.
ईश्वर के प्रति सम्पूर्ण समर्पण स्थाई ख़ुशी लाता है.
ईश्वर शाश्वत आनंद का झरना है इसमें स्वयं को सराबोर कर लो.
अहम् रिश्तों के बीच में दीवार खड़ी कर देता है जो भावनाओं  के प्रवाह में बाधा उत्पन्न करती है. अतः अहम् की दीवार गिरा दो.
जो जिस इच्छा से ईश्वर के पास जाता है ईश्वर उसकी मनोकामना पूर्ण करते हैं. किन्तु जो प्रेम के कारण ईश्वर के पास जाता है वह ईश्वर को प्राप्त करता है.
ईश्वर की महिमा का बखान कर पाना कठिन है. हमारे चारों तरफ जो भी सुन्दर, वृहद् , भव्य, है वह ईश्वर की असीम शक्ति का अंश मात्र है.
पूर्ण शरणागति में कोई भी शिकायत नहीं रहती. सुख और दुःख एक समान  लगते हैं.
इससे को फर्क नहीं पड़ता आप कितनी बार असफल होते हैं  पर जब आप प्रयास छोड़ देते हैं तो आप हार जाते हैं.
आस्था सिर्फ कुछ सिद्धांतों का पालन करना या शास्त्रों का अनुशरण  मात्र नहीं है. यह तो पक्का विश्वास है.
ईश्वर को शब्दों में बांधना वैसा ही है जैसा आकाश को एक छोटे डिब्बे  में बंद करने का प्रयास करना.
जो कठिनाइयों को धैर्य पूर्वक सहन करता है वह मजबूत बनता है.
माँ का वर्णन करने में शब्द खोखले मालूम पड़ते हैं.
एक दृढ व्यक्ति चट्टान की भांति अडिग रहकर सब तकलीफें झेलता है.
धैर्य और सहन शक्ति किसी भी कठिनाई पर विजय प्राप्त कर सकते हैं.
इस दुनिया की विविधता के पीछे एक ही शक्ति है , ईश्वर . जीवन का उद्देश्य उस तक पहुचना है.
विपरीत परिस्तिथियों में जो धैर्य बनाये रहकर सकारात्मक सोंच के साथ आगे बढ़ता है वह कठिनाईयों को पार कर लेता है.
आस्था अमृत की तरह है जो हताश मन में उत्साह जगाती है.
आस्था जीवन दायिनी शक्ति है.
जो भी प्रभु ने आपको दिया है ख़ुशी से स्वीकार करें और उसके लिए आभार प्रकट करें. जो नहीं मिला उसके लिए अफ़सोस न करें .
चिंता न करें आप अकेले नहीं हैं अपने सब दुखों, चिंताओं के साथ स्वयं को प्रभु के चरणों में समर्पित कर दें.
चाहें कितनी भी कठिन परिस्तिथि क्यों न हो दो चीज़ें कभी नहीं छोड़नी चाहिए, धैर्य और सतत प्रयास.
प्रभु हर दौर में हमारे साथ हैं. ब्रह्मा के रूप में सृजन करते  हैं  , विष्णु के रूप में पालते हैं और महेश के रूप में संहार करते हैं . जन्म से मृत्यु तक वह  हमारे साथ हैं .
आप स्वयं ही अपने चरित्र के निर्माता हैं. जो भी आप करते हैं या सोंचते हैं.आपके अवचेतन मन में अंकित हो जाता है. यह ही आपकी आदत बन जाता है जो आपके चरित्र का हिस्सा बन जाता है . अतः अच्छी आदतें डालें.
ईश्वर इस सृष्टि के कण कण में है. सूर्य, चन्द्र और तारों की रौशनी में ईश्वर है, माटी की सोंधी महक में ईश्वर है, ध्वनि में "ॐ" रूप में ईश्वर है. सभी प्राणियों के  प्राण ईश्वर ही है. माया के भ्रम के कारण हम ईश्वर को पहचान नहीं पाते हैं. माया के परदे को हटा कर ही सर्वव्यापी ईश्वर के दर्शन होंगे.
जो व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन बनाकर चलता है वह सुखी रहता है.
हर व्यक्ति आनंद की खोज में है. वह नाशवान वस्तुओं में उसे खोजता है किन्तु निराशा ही हाथ आती है. वास्तविक प्रसन्नता तो अपने भीतर ही होती है.
परेशान मन के लिए एक ही विश्राम स्थल है , ईश्वर.
सतत प्रयास, दृढ आस्था, मजबूत इरादा आपको लक्ष्य तक ले जाते हैं.
यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड तीन गुणों के आधीन है सात्त्विक, राजसिक, और  तामसिक. ये गुण  हर प्राणी में निहित हैं  जो इन तीन गुणों से ऊपर उठ सकता है वही ईश्वर को पा सकता है.
यदि आपको विश्वास है की ईश्वर आप की प्रार्थना का फल देगा तभी वह आप की प्रार्थना सुनेगा.आप की आस्था से बढ़कर कुछ नहीं है.
हमें विपरीत परिस्थितियों में भी ईश्वर के प्रति अपने विश्वास को बनाये रखना चाहिए.यह हमें साहस पूर्वक मुसीबतों का सामना करने की शक्ति प्रदान करता है.
परम पुरुष अपनी एक दृष्टि से प्रकृति के गर्भ में बीज आरोपित करता है. प्रकृति के गर्भ से इस संपूर्ण ब्रह्माण्ड का जन्म होता है. सभी प्राणियों के लिए ईश्वर बीज दाता पिता हैं.
"ॐ तत सत" ब्रह्म  के तीन अभिधान हैं. "ॐ" शब्द ब्रह्म सृष्टि की उत्पत्ति है. "तत" जो अवर्णनीय है, अनंत है, चिर स्थाई है जो सबका पालन हार है वह मध्य है. "सत" जो परम वास्तविकता है वही इस सृष्टि का अंतिम आश्रय है.
वह जो कभी नहीं बदलता है, जो चिर स्थायी है, जो तीनो काल में विद्यमान है, जो अजन्मा है, अविनाशी है, जिससे संपूर्ण सृष्टि उपजती है और जिसमें लय हो जाती है वह परम सत्य ही ईश्वर है.
आस्था जीवन का मुख्य आधार है. आस्था हीन मनुष्य कुछ प्राप्त नहीं करता.
जिसमे दृढ़ता न हो वह अपनी मंजिल नहीं पा सकता है.
इस संसार में प्रत्येक जीव की मंजिल ईश्वर ही है. जाने या अजाने हर जीव उसी तरफ बढ़ रहा है. जब तक जीव और ईश्वर का मिलन न हो जाये जीव की यह यात्रा चलती रहेगी.
किसी अतिथि के सत्कार के लिए जिस प्रकार घर की सफाई की जाती है उसी प्रकार इश्वर के लिए मन को निर्मल बनायें.
करुणा एक दैवीय भाव है. ईश्वर करुणा से भरपूर है. जो भी प्राणियों पर दया दिखाता है वह ईश्वर के समीप होता है.
ईश्वर इस जगत का रचयिता, पालन कर्ता, और संहारक है. वही समस्त ब्रह्माण्ड का आदि, अंत, एवं मध्य है. ईश्वर ही सब कुछ है.
आस्था के बिना संपूर्ण ज्ञान दल दल पर ईमारत खड़ा करना है.
एक ही चेतना सभी प्राणियों में प्रकट है. यह शाश्वत है, स्व-प्रकाशित है और सर्वव्यापी है. यह चेतना ही ईश्वर है.  
जो स्वयं को पूर्णतया ईश्वर को समर्पित करके अपना मन ईश्वर में रमा लेता है वह कठिनाईयों में भी चट्टान की भांति अडिग रहता है.
जिस प्रकार एक शिशु पूर्ण विश्वास के साथ अपनी माँ पर आश्रित होता है उसी प्रकार स्वयं को पूर्ण भक्ति के साथ ईश्वर के समक्ष समर्पित कर दें.
केवल दृढ़ आस्था ही ईश्वर प्राप्ति  में सहायक है.
ईश्वर ही इस ब्रह्माण्ड को चारों तरफ से घेरे है, वही पूरी सृष्टि में व्याप्त है, वही पुरे ब्रह्माण्ड में प्रविष्ट है. ईश्वर के अतिरिक्त यहाँ कुछ नहीं है.
जिस प्रकार लहरें सागर में उठती हैं कुछ देर ठरती हैं और सागर में विलीन हो जाती हैं उसी प्रकार यह संसार ईश्वर से जन्म लेता है ईश्वर  में आश्रित रहता है और अन्त में ईश्वर में लीन हो जाता है.
केवल निर्भय और दृढ़ संकल्प का व्यक्ति ही सच्ची आस्था विकसित कर सकता है.
जब तक लक्ष्य न मिल जाए प्रयास न छोड़ें.
जिस प्रकार एक किसान खर पतवार को उखाड़ कर फ़ेंक देता है उसी प्रकार मस्तिष्क से सभी नकारात्मक विचार उखाड़ कर बहार कर दें ताकि सुविचार मन में आ सकें.
एक विचार जिस पर हम बार बार मनन करते हैं वह हमारे अन्तः मन में अंकित हो जाता है. अतः नकारात्मक विचारों को मन में न आने दें.
कठिनाईयों को दिखा दो की जितनी उनकी क्षमता है उससे अधिक तुम सह सकते हो.
कठिनाईयों को अपने ऊपर हावी न होने दें. सदैव अपना  हौंसला बुलंद रखें.
स्वयं को ईश्वर के आधीन छोड़ दें. जो भी हमें मिले उसे बिना शिकायत के कबूल करें.
ईश्वर ने जब हमें आश्रय का आश्वासन दिया है तो निराश होना पाप है.
संतुलन जीवन का आधार है. संतुलित मस्तिष्क समस्त इच्छाओं, क्रोध, भय से रहित शांति में रहता है.
अपने सम्पूर्ण जीवन में हम सुख दुःख, हानि लाभ, मिलन विछोह, पसंद नापसंद, प्रेम घृणा, प्रसंशा निंदा, इत्यादि विरोधी भावों के मध्य झूलते रहते हैं. परन्तु शांति इन सभी भावों में समता बनाने में है.
जब आप अंधकार में भटक रहे हों और कोई मार्ग दिखाई न दे तो अर्जुन की भांति ईश्वर की शरण में चले जांयें, ईश्वर आपको सही मार्ग दिखायेंगे.
 जिस प्रकार प्राण दायक वायु वातावरण में विद्यमान है  उसी प्रकार  ईश्वर सर्वव्यापी है और हमारे जीवन का   आधार है.
नकारात्मक सोंच आपका सब कुछ ले लेती है और आपके पास कुछ नहीं रहता जबकि सकारात्मकता आपसे कुछ नहीं लेती परन्तु बहुत कुछ देती है.
यदि हम दृढ़ रहें और हिम्मत न हारें तो समस्याएं हम से हार जाएँगी.
स्वयं पर विश्वास करें जो स्वयं पर विश्वास नहीं करता है वह किसी पर भी यकीन नहीं कर सकता है.
अन्धकार से घबराओ नहीं , दीपक जलाओ अँधेरा स्वयं भाग जाएगा.
जीवन को जीने का सबसे अच्छा तरीका है की सदैव यह उम्मीद करें की अच्छा वक़्त आने वाला है.
किसी भी चीज़ के संभव होने के लिए प्रथम शर्त यह है की हम यह विश्वास करें की यह संभव है.
जीवन का उद्देश्य  क्रमिक विकास करना है. हमें चाहिए की हम अज्ञान को त्याग कर ज्ञान की शरण लें, असत्य से सत्य की ओर बढ़ें, अपनी दुर्बलताओं और समस्त भय को त्याग कर सबल और निर्भय बनें.
विविधता प्रकृति का सौंदर्य है किन्तु एक समझदार व्यक्ति विविधता में एकता को देखता है.
जिस प्रकार एक गंतव्य के लिए  विभिन्न मार्गों का अनुशरण किया जा सकता है वैसे ही विभिन्न धर्म एक परम सत्य ईश्वर तक ले जाते हैं.
यदि आप अपने लक्ष्य को पहचानते हैं तो मार्ग में आने वाले विकर्षणों से परेशान न हों. स्वयं को नियंत्रित करें और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ें.
जहाँ हमारी सारी पीड़ा दुःख खुशियाँ चिंताएं गुण अवगुण मान यश सम्बन्ध संकुचित होकर समाप्त हो जाते हैं और शाश्वत आनंद का एक फव्वारा निकलता है वह बिंदु ही ईश्वर की अनुभूति है.
परेशान ना हो धैर्य रखो घोर निराशा में भी उम्मीद की किरण निकलती है जैसे घने अँधेरे में बिजली कौंधती है.
पूर्ण अनासक्ति तब ही आती है जब हम ईश्वर से पूर्ण रूप से आसक्त होते हैं.
बाहर नहीं अपने भीतर परिवर्तन लायें.
ख़ुशी की तलाश में बाहर भटकना यदि, हम उसे अपने भीतर न पा सकें वैसा ही है जैसे प्यास बुझाने के लिए मृगतृष्णा के पीछे भागना.
जीवन में कभी हम प्रसन्न होते हैं कभी दुखी. यह उतार चढ़ाव तो  जीवन का हिस्सा है. जब हम स्वयं को दुखी महसूस करें तो हमें स्वयं को खुश  करने की कोशिश करनी चाहिए किन्तु किसी भी हालत में स्वयं को अवसाद से बचाना चाहिए.
हताश हो जाना आसान  है किन्तु मुश्किलों से लड़ना कठिन है. जो संघर्ष करता है वही सफल होता है.
प्रेम और नफ़रत, सुख और दुःख, यश और अपयश, कुछ भी स्थाई नहीं है केवल ईश्वर ही सदा रहता है.
जीवन हमारे समक्ष जो भी चुनौती रखता है उसे साहस के साथ ईश्वर पर पूर्ण आस्था रखते हुए स्वीकार करो. ईश्वर हमारी सहायता अवश्य करेंगे .
होली रंगों का पर्व है. आओ हम मिलकर इस दुनिया को प्रेम, सदभाव, शांति और भाईचारे के रंगों में रंग दें.
जीवन में आने वाली कठिनाईयाँ हमें स्वयं की शक्ति परखने का मौका देती हैं.
कुछ  प्राप्त करने के लिए हमारा अपने लक्ष्य के प्रति पूर्ण रूप से केन्द्रित होना आवश्यक है. जो दो लक्ष्यों पर निशाना साधता है वह एक भी लक्ष्य नहीं भेद पाता है.
अनियंत्रित मन उस जंगली घोड़े की तरह है जो इधर उधर भटक कर अपनी ऊर्जा बेकार करता है. इसे पालतू बनाने की ज़रुरत है. इस की लगाम कस कर थाम लें ताकि इसे अपने अनुसार चलाया जा सके. यह कार्य कठिन अवश्य है पर संभव है.
धैर्य एवं अथक उधोग चमत्कार कर सकते हैं.
चिंता और भय ये दोनों मस्तिष्क को बहुत परेशान करते हैं. इन्हें केवल प्रफुल्ल मन एवं सकारात्मक विचारों द्वारा ही दूर किया जा सकता है. अतः प्रसन्न रहे तथा सकारात्मक सोंच अपनाएं.
दृढ संकल्प की कमी किसी भी कार्य में सबसे बड़ी बाधा है.
जिस प्रकार सूर्य की उपस्तिथि में अँधेरा नहीं ठहरता उसी प्रकार यदि हम स्वयं को ईश्वर के सामने समर्पित कर दें तो हमारी सारी चिंताएं, संशय तथा दुःख स्वतः ही दूर हो जायेंगे.
वास्तविकता से कोई पीछा नहीं छुड़ा सकता है. जो ऐसा करता है वह उस शुतुरमुर्ग की भांति व्यहवार करता है जो बालू में आपना सर छुपाकर यह सोंचता है की शिकारी उसे नहीं देख पा रहा है.
जीवन शैली में कोई भी परिवर्तन एक दिन में नहीं आता. उसका अभ्यास करना पड़ता है. अतः धैर्य पूर्वक धीरे धीरे जीवन शैली को बदलने का प्रयास करें.
हमें बुरे और नकारात्मक विचारों को अपने मस्तिष्क में प्रवेश करने से रोकना चाहिए. जिस प्रकार मट्ठे की एक बूँद पूरे दूध को ख़राब कर देती है उसी प्रकार ये हमारे विचारों को दूषित कर सकती हैं.
ईश्वर हमारी आस्था में है. जो विश्वास नहीं करता वह ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता.
विश्वास से आस्था का जन्म होता है, आस्था से हमें कठिनाईयों का सामना करने की प्रेरणा मिलती है. कठिनाईयां झेल कर ही हम आगे बढ़ते हैं.
ईश्वर जो की सर्वव्यापी है हमारे ह्रदय में भी निवास करता है. वह हमारे भीतर से हमे मार्गदर्शन देता है. अतः उसे बहार क्यों खोजें. ह्रदय के भीतर ही उसका साक्षात्कार करें.
आस्था हमें धीरज धरना सिखाती है , धीरज हमें कठिनाईयों से उबरने की शक्ति देता है. अतः कभी आस्था का दामन न छोड़ें.
जीवन में कठिनाईयां हमारी शक्ति की परीक्षा लेने के लिए आती हैं. यदि हम थोडा साहस दिखाएं और धैर्य रखें तो स्वयं को साबित कर सकते हैं.
किसी भी परिस्तिथि में उम्मीद का दामन न छोडें. उम्मीद बहुत बड़ी प्रेरक शक्ति है.
ईश्वर जो सारे जगत का मूलाधार है इस ब्रम्हांड के कण कण में व्याप्त है . ईश्वर के अतिरिक्त यहाँ कुछ नहीं है.
अधिकारों से पहले कर्त्तव्य आते हैं, हम अक्सर अपने अधिकारों की चर्चा करते हैं किन्तु अपने कर्तव्यों का निर्वाह नहीं करते. पहले अपने कर्तव्य का पालन करें फिर अधिकार मांगें.
आपके जीवन में कोई और परिवर्तन नहीं ला सकता जब तक आप इसके लिए स्वयं तैयार न हों.
विश्वास रखो कठिन समय के बाद सुख अवश्य आता है, तेज बारिश के बाद आकाश में इन्द्रधनुष बनता है.
एक चींटी जो बार बार गिरती है पर दीवार पर चढ़ने का प्रयास जारी रखती है और अंत में सफल हो जाती है, तो मनुष्य क्यों हार मान ले जो उससे कहीं अधिक योग्य है.
एक छोटा सा बीज धरती को फोड़कर अंकुरित होता है और धीरे धीरे एक विशाल वृक्ष बन जाता है यह उसकी दृढ शक्ति है. मनुष्य भी यदि दृढ संकल्प हो तो अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकता है.
प्रेम का भाव हमें एक दूसरे के नजदीक लाता है. प्रेम का भाव तो पशु भी महसूस करते हैं. प्रेम का भाव हमें निर्मल बनाता है. अतः सभी से प्रेम करो.
समय एक नदी के समान है और हम उसमें बहने वाली धारा, जो कुछ समय तक इसके साथ बहती हैं और बाद में इसमें विलीन हो जाती हैं. हम में से कुछ इस यात्रा में अपने चिन्ह छोड़ जाते हैं.
जब तक हम शुरुआत नहीं करते लक्ष्य दूर प्रतीत होता है. एक एक कदम इस दूरी को कम करता है और हम लक्ष्य तक पहुँच जाते हैं. ज़रूरत  है आगे बढ़ते रहने की.
जीवन का हर एक क्षण बहुमूल्य है अतः प्रत्येक क्षण का सदुपयोग करें उसे पूर्ण रूप से जियें इससे पहले की वह हमारे हाथ से निकल जाये.
कठिन परिस्तिथियों में भी यकीन रखो की सब ठीक होगा. विश्वास में बहुत शक्ति होती है.
जीवन हर परिस्थिति में आगे बढ़ने के लिए है. अतः खुद को प्रेरित करते रहें, नए उद्देश्य खोजें और आगे बढें.
ईश्वर हमारी देखभाल कर रहा है हमें सिर्फ अपने विश्वास को मजबूत करना है. हम चिंतित होते हैं जब हमारा विश्वास डोलता है.
जीवन एक पेंडुलम की भांति कभी इधर कभी उधर डोलता  है. अतः कठिन समय में धैर्य न खोएं, आशा रखें , अच्छा वक़्त शीघ्र आएगा.
यदि हम, जो हमारे पास नहीं है उस पर रोने की बजाय जो है उसके लिए ईश्वर का शुक्रिया अदा करना सीख लें तो हम सुखी रहेंगे.
मष्तिष्क को जैसी खुराक मिलती है वह उसी प्रकार सोंचता  है . सकारात्मक सोंच से व्यक्ति को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलाती है जबकि नकारात्मक सोंच व्यक्ति को पीछे खींचती है.
जीवन में आने वाला प्रत्येक दिन नया होता है और अपने साथ नयी संभावनाएं लाता है.
जिसके मन में प्रश्न उठते हैं वही उनके उत्तर प्राप्त करता है.
जीवन सीखने की एक अनंत प्रक्रिया है. यदि आप तैयार हैं तो जिंदगी आपको बहुत से सबक सिखाएगी.
कर सकने और न कर सकने के बीच का फर्क जीवन को सर्वाधिक प्रभावित करता है.
अंतिम श्वास तक आशा नहीं छोड़नी चाहिए.
व्यक्ति को मारा जा सकता है उसकी विचारधारा को नहीं. नाथूराम गोडसे ने गाँधी जी की हत्या की किन्तु गाँधी आज भी अहिंसा के सिद्धांत के द्वारा लोगों को अपने अधिकारों के लिए शांति पूर्ण ढंग से लड़ने को प्रेरित कर रहे हैं.
सकारात्मकता आपको अँधेरी सुरंग के उस मुहाने पर ले जाती है जहां रौशनी हो जबकि नकारात्मकता आपको अँधेरे में भटकने के लिए छोड़ देती है.
जैसा हम सोंचते हैं वैसी ही ऊर्जा हमें मिलती है. सकारात्मक सोंच आशावादी नज़रिया बनाती है और नकारात्मक सोंच निराशा को जन्म देती है.