प्रभु हर दौर में हमारे साथ हैं. ब्रह्मा के रूप में सृजन करते हैं , विष्णु के रूप में पालते हैं और महेश के रूप में संहार करते हैं . जन्म से मृत्यु तक वह हमारे साथ हैं .
आप स्वयं ही अपने चरित्र के निर्माता हैं. जो भी आप करते हैं या सोंचते हैं.आपके अवचेतन मन में अंकित हो जाता है. यह ही आपकी आदत बन जाता है जो आपके चरित्र का हिस्सा बन जाता है . अतः अच्छी आदतें डालें.
ईश्वर इस सृष्टि के कण कण में है. सूर्य, चन्द्र और तारों की रौशनी में ईश्वर है, माटी की सोंधी महक में ईश्वर है, ध्वनि में "ॐ" रूप में ईश्वर है. सभी प्राणियों के प्राण ईश्वर ही है. माया के भ्रम के कारण हम ईश्वर को पहचान नहीं पाते हैं. माया के परदे को हटा कर ही सर्वव्यापी ईश्वर के दर्शन होंगे.