ईश्वर ही इस ब्रह्माण्ड को चारों तरफ से घेरे है, वही पूरी सृष्टि में व्याप्त है, वही पुरे ब्रह्माण्ड में प्रविष्ट है. ईश्वर के अतिरिक्त यहाँ कुछ नहीं है.
जिस प्रकार लहरें सागर में उठती हैं कुछ देर ठरती हैं और सागर में विलीन हो जाती हैं उसी प्रकार यह संसार ईश्वर से जन्म लेता है ईश्वर में आश्रित रहता है और अन्त में ईश्वर में लीन हो जाता है.