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Showing posts from June 9, 2013
पिता एक वट वृक्ष की भाँती अपने बच्चों को छाया में रखता है किन्तु स्वयं धूप में जलता है।
हम सभी के भीतर असंभव को संभव कर दिखने की क्षमता विद्यमान है।
जब ईमानदारी से किये गए प्रयास के बावजूद भी स्तिथि काबू  में न आये तो उसे समय पर छोड़ देना चाहिए। समय बहुत कुछ ठीक कर देता है।
अपने दुखों को भुलाने का सबसे अच्छा तरीका है दूसरों के  दुखों के बारे में सोंचना।
आशा विषम परिस्तिथि में एक अमूल्य निधि है।
आस्था की रस्सी थाम कर व्यक्ति बड़ी से बड़ी ऊँचाइयाँ छू सकता है।
इस दुनिया में दो तरह के लोग हैं। कुछ स्तिथियों को देखकर अनदेखा कर देते हैं। कुछ स्तिथि की गंभीरता को महसूस कर उसमें बदलाव करने का प्रयास करते हैं।