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Showing posts from June 1, 2014
हर वस्तु का अपना उपयोग है। उसी के अनुसार प्रयोग करें।
अपना काम सही तरह से करें बाकी सब ठीक हो जाएगा।
कल की चिंता न करें। आज सही कदम उठाएं।
छोटी छोटी वस्तुएं बड़ा सुख देती हैं। 
अपनी शक्ति को पहचान कर उसका सदुपयोग करें।
डा. फादर कामिल बुल्के    बेल्जियम  से  भारत  आकर मृत्युपर्यंत  हिंदी ,  तुलसी  और  वाल्मीकि  के भक्त रहे । उन्हें  साहित्य एवं शिक्षा  के क्षेत्र में  भारत सरकार  द्वारा सन  १९७४  में  पद्म भूषण  से सम्मानित किया गया था।  नवंबर १९३५ में भारत, बंबई पहुंचे। वहां से  रांची   आ गए। गुमला जिले के इग्नासियुस स्कूल में गणित के अध्यापक बने। वहीं पर हिंदी,   ब्रज   व   अवधी   सीखी. १९३८ में, सीतागढ/हजारीबाग में पंडित बदरीदत्त शास्त्री से हिंदी और   संस्कृत   सीखा। १९४० में   हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग   से विशारद की परीक्षा पास की। १९४१ में पुरोहिताभिषेक हुआ, फादर बन गए. १९४५   कलकत्ता विश्वविद्यालय से हिंदी व संस्कृत में बीए पास किया। १९४७ में   इलाहाबाद विश्वविद्यालय   से एमए किया। [1] रामकथा:  १९४९ में डी. फिल उपाधि के लिये इलाहाबाद में ही उनके शोध  रामकथा : उत्पत्ति और विकास  को स्वीकृति मिली. १९५० में पुनः रांची आ गए।  संत जेवियर्स महाविद्यालय  में हिंदी व संस्कृत का विभागाध्यक्ष बनाया गया। सन् 1950 ई. में ही बुल्के ने भारत की नागरिकता ग्रहण की. इसी वर्ष वे  बिहार राष्ट्रभाषा परिष
साधन नहीं इच्छा शक्ति सफलता दिलाती है। 
उत्तम विचार ही उत्तम कार्यों को जन्म देते हैं।