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Showing posts from March 23, 2014
ईश्वर को प्राप्त करने के दो मार्ग हैं ज्ञान मार्ग  भक्ति मार्ग  ज्ञान का मार्ग उन व्यक्तियों के लिए है जो अपने पूर्व संचित कर्मों के कारण उस स्तिथि में हैं जहाँ से वह पूर्ण सत्य का अनुभव कर सकते हैं। किन्तु एक नए व्यक्ति  के लिए यह मार्ग कठिन है। क्योंकि अभी वह उस स्तिथि में नहीं पहुंचा है जहाँ से वह सर्वत्र ईश्वर का अनुभव कर सके। अतः उसके लिए आवश्यक है कि वह स्वयं को भक्ति कि तरफ मोड़े। भक्ति प्रेम कि पराकाष्ठा है। प्रारम्भ में हम ईश्वर को एक पिता, सखा, पुत्र, अथवा एक स्वामी की तरह प्रेम करते हैं। यह प्रेम ईश्वर और भक्त को एक डोर से बंधता है। धीरे धीरे यह रिश्ता इतना गहरा हो जाता है कि व्यक्ति सर्वत्र ही ईश्वर के दर्शन करने लगता है। ज्ञान और भक्ति मार्ग दोनों ही हमें हमारी मंज़िल तक ले जाते हैं। किन्तु भक्ति का मार्ग प्रेम से भरा होने के कारण रसमय है। इसके कारण मार्ग में आने वाली कठिनाईयों को भक्त हंसते हुए सह लेता है। 
जीवन के संघर्षों से परेशान न हों। संघर्ष हमें आगे बढ़ने में सहायता करते हैं। आवश्यकता धैर्य बनाये रखने की है। जब हमारा विश्वास दृढ होता है तब ही हम धैर्य रख सकते हैं। अतः विश्वास को दृढ करें। अपनी सारी चिंताओं को को छोड़ कर प्रभु के चरणों में स्वयं को समर्पित कर दें। 
अँधेरे में प्रकाश के लिए भटकना निष्क्रिय बैठ कर अँधेरे के लिए रोने से कहीं बेहतर है। 
जब तक आप स्वयं न प्रयत्न करें कोई भी आपकी मदद नहीं कर सकता है। 
समस्याएं आती हैं किन्तु आपके आत्मविश्वास और दृढ़ता को देख हार मान लेती हैं। 
एक ही तत्व विभिन्न रूपों में विद्यमान है, 'ईश्वर'। 
स्वयं कि शक्ति को पहचानो। तुम कमज़ोर नहीं हो। 
अपने उद्देश्य को पाने के लिए संघर्ष करना निष्क्रिय रहने से कहीं अधिक बेहतर है। 
जब मन चंगा तो जग चंगा।