हम राजनितिक स्तर पर स्वतंत्र राष्ट्र हैं किन्तु अभी भी अपनी कमियों के ग़ुलाम हैं। एक शक्तिशाली राष्ट्र के निर्माण हेतु अपनी कमियों को दूर कर एक सुदृढ़ चरित्र का निर्माण ज़रूरी है।
जैसा हम भीतर से महसूस करते हैं वैसी ही हमें दुनिया दिखाई देती है। जो आत्मविश्वास से भरा हो उसे यह अवसरों से भरी मालूम पड़ती है किन्तु नकारात्मक सोंच रखने वाले को यह दुःख से भरी लगती है।
मन ही है जो हमारे समक्ष सम्पूर्ण संसार रचता है। यदि यह उचित स्थान पर रमता है तो वह शक्ति देता है जो समस्त बंधनों को काटकर हमें मुक्ति की राह दिखाता है।