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Showing posts from October 19, 2014
आस्था से आशा को बल मिलता है। 
समर्पण का अर्थ निष्क्रियता नहीं वरन बिना शिकायत के हर परिस्तिथि का सामना करना है।
समर्पण का अर्थ निष्क्रियता नहीं वरन बिना शिकायत के हर परिस्तिथि का सामना करना है। बहुधा लोगों को भ्रम होता है कि सब कुछ ईश्वर पर छोड़ कर नियत कर्म का त्याग ही समर्पण है। किंतु स्वयं भगवान ने श्रीमद् गीता में कहा है कि मनुष्य को किसी भी परिस्तिथि में अपने नियत कर्म नहीं त्यागने चाहिए। अतः फल को प्रभु कि इच्छा पर छोड़ कर कर्म करें। जीवन यात्रा का लक्ष्य स्वयं कि पहचान करना है। सभी प्राणियों में केवल मनुष्य को ही आत्मचिंतन कि शक्ति प्राप्त है। इस जीवन का उद्देश्य महज आहार, मैथुन, निद्रा एवं आत्मरक्षा ही नहीं। ये चरों गुण तो अन्य योनियों में भी पाये जाते हैं। आप के जीवन का लक्ष्य तो आत्म उन्नति के पथ पर चलना है।  आपके भीतर कि समस्त ऊर्जा का स्रोत आपकी आत्मा है। आत्मा अविनाशी है। किसी भी प्रकार से इसे नष्ट नहीं किआ जा सकता है। यह ऊर्जा का पुंज है। इसकी शक्ति कि कोई सीमा नहीं। यही हमारा वास्तविक स्वरुप है। आवश्यकता है इसे पहचानने की। जिन्होंने इस वास्तविक स्वरुप को जान लिया वो आत्म उन्नति के शिखर तक पहुंचे। अतः इस ऊर्जा का सकारात्मक प्रयोग करें। 
जब निराशा का अँधेरा घिर आये तो आस्था का दीप जलाएं।  
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दीपावली की हार्दिक बधाई इन पंक्तियों के साथ  आओ मिलकर करें हम सब दीप प्रज्वलित ज्ञान का ,                              सत्य अहिंसा प्रेम और नारी के सम्मान का।  कर दें रौशन कोना कोना रहे न अब अँधियारा,                              सबसे आगे पहुँ च जाय अब अपना देश प्यारा।   
प्रार्थना की डोर हमें ईश्वर से जोड़ती है। 
कल की चिंता आज को भी बर्बाद कर देती है। 
आशावान व्यक्ति विकत परिस्तिथियों में भी आगे की सोंचता है।