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Showing posts from October 7, 2012
अपने आप को ईश्वर को समर्पित कर निश्चिंत रहें।
ईश्वर अनुभव की वस्तु है न की वर्णन की इसी कारण महात्मा पुरुष ईश्वर का वर्णन करने में सदैव ही शब्दों को अपूर्ण पाते हैं।
हमारे कार्य हमारे शब्दों से अधिक प्रभावशाली होते हैं।
जो क्षण आपके हाथ  में है वह बहुमूल्य है। इसका सदुपयोग करें, इसे व्यर्थ न गवाएं।
कुछ खोजने के लिए हमें नयी दृष्टि का विकास करना पड़ता है।
ईर्ष्या बहुत हानिकारक है। यह नकारात्मकता को जन्म देती है और विकास में बाधक होती है।
समस्याओं का समाधान उन्हीं में छिपा होता है।