नव वर्ष एक कोरे कागज़ की भांति है जिस पर समय नई इबारत लिखेगा। देखते हैं आगे क्या होगा।
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Showing posts from 2012
बाल दिवस
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प्यारे बच्चों 14 नवम्बर को हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्मदिन मनाया जाता है। उन्हें बच्चों से बहुत प्रेम था। बच्चे उन्हें प्यार से 'चाचा नेहरु' कहकर बुलाते थे। अतः उनके जन्मदिन को 'बाल दिवस' के रूप में मनाते हैं। पंडित नेहरू का जन्म एक संपन्न घराने में हुआ था। किन्तु सारे ऐश्वर्य को त्याग कर उन्होंने स्वयं को देश के स्वाधीनता संग्राम के लिए समर्पित कर दिया। देश का प्रथम प्रधानमंत्री बनाने के बाद उन्होंने देश के विकास को नई दिशा दी। उनका सपना एक ऐसे भारत के निर्माण का था जो आर्थिक एवं वैज्ञानिक तौर पर सक्षम हो। पंडित नेहरू एक अच्छे लेखक भी थे। अंग्रेजी भाषा पर उनकी अच्छी पकड़ थी। उनकी प्रमुख रचनाओं में "भारत एक खोज" का महत्वपूर्ण स्थान है यह पुस्तक भारतवर्ष के इतिहास की अच्छी झांकी पेश करती है।
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मोर और गिद्ध एक जंगल में एक मोर और एक गिद्ध रहते थे। दोनों एक दूसरे के पडोसी थे। मोर को अपनी सुन्दरता पर बहुत घमंड था। अक्सर गिद्ध से कहता रहता था " देखो मैं कितना सुंदर हूँ , जब मैं अपने खूबसूरत परों को फैला कर नृत्य करता हूँ तो सब मुग्ध हो जाते हैं। तुम्हारे पास क्या है।" गिद्ध कुछ नहीं बोलता था। एक दिन गिद्ध ने देखा की मोर उदास बैठा है। उसने पास जाकर कारण पूंछा। मोर रोते हुए बोला " मेरा भाई आज सुबह से नहीं मिल रहा है। बिना बताये जाने कहाँ चला गया है। मैं तो अधिक ऊंचा उड़ भी नहीं सकता। कैसे खोजूं उसे।" गिद्ध बोला "बस इतनी सी बात मैं खूब ऊंचा उड़ भी सकता हूँ और दूर तक देख भी सकता हूँ। मैं अभी तुम्हारे भाई को खोज कर लाता हूँ।" यह कह कर वह उपर आकाश में चला गया। कुछ ही आगे जाने पर उसने देखा की मोर का भाई तालाब के पास घायल पड़ा है। उसने सब को सूचना दी। मोर तथा जंगल के अन्य प्राणियों ने वहाँ पहुँच कर घायल मोर को प्राथमिक उपचार दिया। मोर अपने बर्ताव पर शर्मिंदा था। गिद्ध से क्षमा मंगाते हुए बोला " मैं बहुत शर्मिंदा हूँ। मुझे माफ़ कर दो। मैं समझ गय...
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वर्तमान समय में नई एवं पुरानी पीढ़ी के बीच वैचारिक मतभेद अधिक बढ़ गया है। नई पीढ़ी का मानना है की बुजुर्गों की सोंच दकियानूसी है अतः वे उनकी कही बातों से इत्तेफाक नहीं रखते। वहीँ बुजुर्गों का सोंचना है की युवा पीढ़ी आत्मकेंद्रित एवं स्वार्थी है अतः वे केवल अपने विषय में ही सोंचा सकते हैं। आवश्यकता दोनों पीढ़ियों के बीच वैचारिक सामंजस्य बिठाने की है। परिवर्तन सृष्टि का नियम है। कोई भी समाज विचारों में परिवर्तन लाये बिना अधिक समय तक नहीं ठहर सकता है। हर नई पीढ़ी अपने साथ विचारों का परिवर्तन लाती है। पुरानी पीढ़ी के लिए इन परिवर्तनों के साथ सामंजस्य बिठाना कठिन होता है।उन्हें लगता है की नए विचार उनके पूर्वनिर्धारित संस्कारों पर आघात हैं। जबकि यह हर बार सही नहीं होता। उन्हें समझाना चाहिए की जो पुराने वक़्त में सही था आवश्यक नहीं वह आज भी सही हो। अतः उन्हें नए विचारों को अपनाने को तैयार रहना चाहिए। युवा वर्ग को भी समझाना चाहिए की बुजुर्गों की हर बात के पीछे उनका वर्षों का तज़ुर्बा छिपा है अतः उन्हें अनसुनी नहीं करना चाहिए। यदि व...
रावण वध
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छुट्टी का दिन था । मैं आराम से चाय की चुस्कियां लेते हुए अखबार पढ़ रहा था। वही पुरानी खबरें हत्या, लूटपाट, अपहरण, पोलिटिकल स्कैम्स। सिर्फ हेडलाइंस पढ़कर अखबार बंद कर दिया। तभी मेरा पाँच वर्ष का बेटा मोहन मेरे पास आकर बैठ गया और बोला " पापा आज क्या है।" मैंने समझाते हुए कहा " आज दशहरा है। आज के दिन भगवान् रामचंद्र ने रावण का वध कर के बुराई का अंत किया था।" मोहन ने पूंछा " रावण क्या बुरा इंसान था।" मैंने कहा " हाँ वह एक बुरा इंसान था। इसी लिए आज के दिन बुराई के प्रतीक रावण , कुंभकर्ण, एवं मेघनाथ के पुतले जलाते हैं। ताकि बुराई का नाश हो।" मोहन बहुत ध्यान से मेरी बातें सुन रहा था। कुछ देर कुछ सोचने की मुद्रा में बैठा रहा फिर बोला " अच्छा, तो क्या पुतले जलाने से बुराई ख़त्म हो जाती है।" मैं अवाक् रह गया उस मासूम ने कितना प्रासंगिक प्रश्न किया था। सैकड़ों वर्षों से हम सिर्फ प्रतीकों को ही जला रहे हैं। जब की ज़रुरत अपने भीतर बसे रावण का वध करने की है।
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एक राज्य था। वहां की प्रजा को पहली बार यह अधिकार मिला की वह अपना राजा स्वयं चुने। प्रजा बहुत प्रसन्न थी। राज्य के दो उत्तराधिकारी थे एक "आपनाथ" और दूजे "सांपनाथ". पहले चुनाव का समय आया दोनों प्रत्याशियों ने जनता को रिझाने की पुरजोर कोशिश की। जनता से बड़े बड़े वादे किये किन्तु आपनाथ ने बाजी मार ली। जनता बेहद खुश थी की अब उसके दिन बदलेंगे किन्तु गद्दी पर बैठते ही आपनाथ प्रजा को भूल गए। आपनाथ की नज़र राजकीय कोष पर पड़ी। उन्होंने दोनों हाथों से उसे लुटाना आरम्भ कर दिया। आपनाथ और उनके सगे सम्बन्धियों के दिन बदल गए। सूखी रोटी को तरसने वाले मलाई खाने लगे। जनता दो वक़्त की रोटी को त्राहि त्राहि करने लगी। सांपनाथ ने जनता के हित में बहुत आंसू बहाए और आपनाथ और उनकी नीतियों का कड़ा विरोध किया। प्रजा को लगा की उनसे भारी भूल हो गयी। उनका परम हितैषी तो सांपनाथ है। जनता उस दिन की प्रतीक्षा करने लगी जब आपनाथ को हटा कर सांपनाथ को गद्दी पर बिठा सके। जल्द ही वो समय भी आया। इस बार प्रजा ने सांपनाथ को चुना। एक बार फिर प्रजा सुखद भविष्य के सपने देखने लगी। गद्दी पर बैठते ह...
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दफ्तर से निकल कर निखिल टहलते हुए बस स्टैंड की तरफ चल दिया। बस के आने में अभी समय था। सड़क के किनारे मज़मा लगा देख कर वह भीड़ में घुस गया। एक मदारी बन्दर का नाच दिखा रहा था। मदारी डुग डुगी बजाता था और रस्सी से बंधा बन्दर बंदरिया का जोड़ा उसके इशारे पर ठुमक ठुमक कर नाच रहा था। बच्चे ताली बजाकर इस तमाशे का आनंद ले रहे थे। थोड़ी देर में तमाशा ख़त्म हो गया। सबने मदारी को पैसे दिए और अपनी अपनी राह चल दिए। निखिल ने भी दस रुपये का नोट मदारी को दिया और बस स्टैंड पर खड़ा होकर बस की प्रतीक्षा करने लगा। वहां खड़े खड़े एक अजीब सा ख्याल उसके मन में आया। उस में और मदारी के बन्दर में फ़र्क ही क्या है। बन्दर की तरह वह भी तो कभी घरवालों तो कभी अपने बॉस के इशारे पर नाचता रहता है। यह विचार आते ही बन्दर के लिए उसके मन में सहानुभूति जाग उठी।
आस
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सब कहते हैं की वो नहीं आएगा. उसने वहां किसी गोरी मेम से ब्याह कर लिया है, अच्छी नौकरी है, अपना घर है, वहां का एशो आराम छोड़कर यहाँ क्या करने आएगा? फिर भी हर आहट पर इस बूढ़े जिस्म में झुर झुरी सी दौड़ जाती है. मन छोटे बच्चे सा उछलने लगता है जिसे खिलौना लेकर बाज़ार से लौटते पिता का इंतजार हो. दस बरसों से आँखें उसे देखने को तरस रही हैं. उसका माथा चूमने को होठ प्यासे हैं जिसे सहलाकर उसकी पीड़ा हर लेती थी. हथेलियाँ उन गालों को भर लेने को बेताब हैं जिन पर कभी पांचों उँगलियों की छाप बनाई थी ताकि उसे भटकने से रोक सकूं. उसे छाती से लगाने की चाह है जिसका दूध पिलाकर उसे पाला था. दुनिया का क्या है कुछ भी बोलती है. पर मैंने तो कोख से जना है फिर मैं क्यों आस छोड़ दूं?
भोर
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घर के आँगन में एक नन्ही सी लड़की किलकारियां मार रही थी. ठुमक ठुमक कर पूरे आँगन में घूम रही थी. अचानक ही प्रश्न भरी निगाहों से देखते हुए बोली " ऐसा क्यों कर रही हो ? क्या मैं तुम्हारा अंश नहीं ? मुझे भी तो तुमने अपने रक्त से सींचा है . तो फिर क्यों ? सिर्फ इसलिए की मैं एक लड़की हूँ." वसुधा की आँख खुल गयी. पसीने से पूरी तरह भीगी हुई थी. कुछ देर तक बिस्तर में बैठी सपने के बारे में सोंचती रही.फिर ताज़ी हवा खाने बालकनी में आ गयी. चिड़ियाँ चह चहा रही थीं . आसमान में एक रक्तिम लकीर जल्द ही सवेरा होने की सूचना दे...