वास्तविक ज्ञान वह है जो विविधता में एकता का दर्शन कराए.
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Showing posts from May 27, 2012
आस
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सब कहते हैं की वो नहीं आएगा. उसने वहां किसी गोरी मेम से ब्याह कर लिया है, अच्छी नौकरी है, अपना घर है, वहां का एशो आराम छोड़कर यहाँ क्या करने आएगा? फिर भी हर आहट पर इस बूढ़े जिस्म में झुर झुरी सी दौड़ जाती है. मन छोटे बच्चे सा उछलने लगता है जिसे खिलौना लेकर बाज़ार से लौटते पिता का इंतजार हो. दस बरसों से आँखें उसे देखने को तरस रही हैं. उसका माथा चूमने को होठ प्यासे हैं जिसे सहलाकर उसकी पीड़ा हर लेती थी. हथेलियाँ उन गालों को भर लेने को बेताब हैं जिन पर कभी पांचों उँगलियों की छाप बनाई थी ताकि उसे भटकने से रोक सकूं. उसे छाती से लगाने की चाह है जिसका दूध पिलाकर उसे पाला था. दुनिया का क्या है कुछ भी बोलती है. पर मैंने तो कोख से जना है फिर मैं क्यों आस छोड़ दूं?