"ॐ तत सत" ब्रह्म के तीन अभिधान हैं. "ॐ" शब्द ब्रह्म सृष्टि की उत्पत्ति है. "तत" जो अवर्णनीय है, अनंत है, चिर स्थाई है जो सबका पालन हार है वह मध्य है. "सत" जो परम वास्तविकता है वही इस सृष्टि का अंतिम आश्रय है.
जो व्यक्ति विषम परिस्तिथियों में भी जब उसका सब कुछ ख़त्म हो जाता है उम्मीद नहीं छोड़ता एक योद्धा होता है.
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