वर्तमान समय में नई  एवं पुरानी पीढ़ी के बीच वैचारिक मतभेद अधिक बढ़ गया है। नई पीढ़ी का मानना है की बुजुर्गों की सोंच दकियानूसी है अतः  वे उनकी कही बातों से इत्तेफाक नहीं रखते। वहीँ बुजुर्गों का सोंचना है की युवा पीढ़ी आत्मकेंद्रित एवं स्वार्थी है अतः वे केवल अपने विषय में ही सोंचा सकते हैं। आवश्यकता दोनों पीढ़ियों के बीच वैचारिक  सामंजस्य बिठाने की है।
परिवर्तन सृष्टि का नियम है। कोई भी समाज विचारों में परिवर्तन लाये बिना अधिक समय  तक नहीं ठहर सकता है। हर नई   पीढ़ी अपने साथ विचारों का परिवर्तन लाती है। पुरानी पीढ़ी के लिए इन परिवर्तनों के साथ सामंजस्य बिठाना कठिन होता है।उन्हें लगता है की नए विचार उनके पूर्वनिर्धारित संस्कारों पर आघात हैं। जबकि यह हर बार सही नहीं होता। उन्हें समझाना चाहिए की जो पुराने वक़्त में सही था आवश्यक नहीं वह आज भी सही हो। अतः उन्हें नए विचारों को अपनाने को तैयार रहना चाहिए।
युवा वर्ग को भी समझाना चाहिए की बुजुर्गों की हर बात के पीछे उनका वर्षों का तज़ुर्बा छिपा है अतः उन्हें अनसुनी नहीं करना चाहिए। यदि वे किसी बात पर एकमत नहीं हैं तो भी उन्हें अपनी बात इस  प्रकार समझानी चाहिए जिसे बुजुर्गों की भावनायों को ठेस न लगे।
हमें परिवारों में ऐसा माहौल बनाना चाहिए जहाँ दोनों पीढियां आपस में बैठ कर एक दूसरे के साथ विचारों का आदान प्रदान कर सकें। 

Comments

Popular posts from this blog