मष्तिष्क को जैसी खुराक मिलती है वह उसी प्रकार सोंचता है . सकारात्मक सोंच से व्यक्ति को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलाती है जबकि नकारात्मक सोंच व्यक्ति को पीछे खींचती है.
जो व्यक्ति विषम परिस्तिथियों में भी जब उसका सब कुछ ख़त्म हो जाता है उम्मीद नहीं छोड़ता एक योद्धा होता है.
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