दफ्तर से निकल कर निखिल टहलते हुए बस स्टैंड की तरफ चल दिया। बस के आने में अभी समय था। सड़क के किनारे मज़मा लगा देख कर वह भीड़ में घुस गया। एक मदारी बन्दर का नाच  दिखा रहा था। मदारी डुग डुगी बजाता था और रस्सी से बंधा बन्दर बंदरिया का जोड़ा उसके इशारे पर ठुमक ठुमक कर नाच रहा था। बच्चे ताली बजाकर इस तमाशे का आनंद ले रहे थे। थोड़ी देर में तमाशा ख़त्म हो गया। सबने मदारी को पैसे दिए और अपनी अपनी राह चल दिए। निखिल ने भी दस रुपये का नोट मदारी को दिया और बस स्टैंड पर खड़ा होकर बस की प्रतीक्षा करने लगा। वहां खड़े खड़े एक अजीब सा ख्याल उसके मन में आया। उस में और मदारी के बन्दर में फ़र्क  ही क्या है। बन्दर की तरह वह भी तो कभी घरवालों तो कभी अपने बॉस के इशारे पर नाचता रहता है। यह विचार आते ही बन्दर के लिए उसके मन में सहानुभूति जाग उठी।

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