ईश्वर को प्राप्त करने के दो मार्ग हैं
भक्ति प्रेम कि पराकाष्ठा है। प्रारम्भ में हम ईश्वर को एक पिता, सखा, पुत्र, अथवा एक स्वामी की तरह प्रेम करते हैं। यह प्रेम ईश्वर और भक्त को एक डोर से बंधता है। धीरे धीरे यह रिश्ता इतना गहरा हो जाता है कि व्यक्ति सर्वत्र ही ईश्वर के दर्शन करने लगता है।
ज्ञान और भक्ति मार्ग दोनों ही हमें हमारी मंज़िल तक ले जाते हैं। किन्तु भक्ति का मार्ग प्रेम से भरा होने के कारण रसमय है। इसके कारण मार्ग में आने वाली कठिनाईयों को भक्त हंसते हुए सह लेता है।
- ज्ञान मार्ग
- भक्ति मार्ग
भक्ति प्रेम कि पराकाष्ठा है। प्रारम्भ में हम ईश्वर को एक पिता, सखा, पुत्र, अथवा एक स्वामी की तरह प्रेम करते हैं। यह प्रेम ईश्वर और भक्त को एक डोर से बंधता है। धीरे धीरे यह रिश्ता इतना गहरा हो जाता है कि व्यक्ति सर्वत्र ही ईश्वर के दर्शन करने लगता है।
ज्ञान और भक्ति मार्ग दोनों ही हमें हमारी मंज़िल तक ले जाते हैं। किन्तु भक्ति का मार्ग प्रेम से भरा होने के कारण रसमय है। इसके कारण मार्ग में आने वाली कठिनाईयों को भक्त हंसते हुए सह लेता है।
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