जीवन दो विपरीत तटों पर बहाने वाली नदी है। जन्म मृत्यु, सुख दुःख, मिलन विछोह इत्यादि। हम सभी इन द्वंदों के बीच झूलते रहते हैं। दुःख के समय भयभीत होकर विलाप करते हैं तो सुख में सब कुछ भूल कर भोग में लीं हो जाते हैं। यही हमारे कष्ट का कारण है। दो विपरीत परिस्तिथियों के बीच संतुलन बनाना ही सही जीवन शैली है।
पिता वह छाया है जो सुरक्षा देता है। वह एक आश्वाशन है।
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