मेरे अपने सभी सुधि पाठक ,सुधि श्रोता और नवोदित, वरिष्ठ,तथा मेरे समय साथ के सभी गीतकार,नवगीतकार और साहित्यिक मित्रों को समर्पित आज का यह नया नवगीत विद्रूप यथार्थ की धरातल पर सामाजिक व्यवस्था और प्रबंधन की चरमराती लचर तानाशाही के कुरूप चहरे की मुक्म्मल बदलाव की जरूत महसूस करता हुआ नवगीत ! साहित्यिक संध्या की सुन्दरतम नवरात्रि की पूर्व बेला में निवेदित कर रहा हूँ !आपकी प्रतिक्रियाएं ही इस चर्चा और पहल को सार्थक दिशाओं का सहित्यिक बिम्ब दिखाने में सक्षम होंगी !
और आवाहन करता हूँ "हिंदी साहित्य के केंद्रमें नवगीत" के सवर्धन और सशक्तिकरण के विविध आयामों से जुड़ने और सहभागिता निर्वहन हेतु !आपने लेख /और नवगीत पढ़ा मुझे बहुत खुश हो रही है मेरे युवा मित्रों की सुन्दर सोच /भाव बोध /और दृष्टि मेरे भारत माँ की आँचल की ठंडी ठंडी छाँव और सोंधी सोंधी मिटटी की खुशबु अपने गुमराह होते पुत्रों को सचेत करती हुई माँ भारती ममता का स्नेह व दुलार निछावर करने हेतु भाव बिह्वल माँ की करूँणा समझ पा रहे हैं और शनै शैने अपने कर्म पथ पर वापसी के लिए अपने क़दमों को गति देने को तत्...
मुट्ठी में मैल नहीं सूखी तलैया सा सूखा है ओंठों का थूंक आँखों में ऊगा नकुओं में महका भमरों का चूसा गुलाब ! चंपा चमेली हांथों की खेली मेहदी रची है गीतों की दिल में अमुआं की डारी गाये कोयलिया बसवट में अरझी है कोरी किताब ! बेरहमी लू में सूरज की किरणे आगी उलीचें सिसकती हवा छांह बरगद निहारें, नभ छूते बादल को भेजा है न्योता वरुण ने चुँधियाया झाँक रहा पोखर दरारें, आँतों की पत्थरी पेटों को पची नहीं नुस्खे न जाने मूरख अनाड़ी घिस घिस पिया खूब घुमची का करु करु काढ़ा बाहर न आया जुलाब ! मुट्ठी में मैल नहीं सूखी तलैया सा सूखा है ओंठों का थूंक आँखों में ऊगा नकुओं में महका भमरों का चूसा गुलाब ! चंपा चमेली हांथों की खेली मेहदी रची है गीतों की दिल में अमुआं की डारी गाये कोयलिया बसवट में अरझी है कोरी किताब ! भीड़ भगदड़ में टूटे घुटने पसुरियों की पीड़ा हंडिया के अदहन सी आँखों में छलकी, मर्माहत अंतहीन हादसों की खबरें कुर्बानी कदम कदम लगती कसइयों को हलकी, मुस्कानें मंहगी मुंह में सकेले झूमे न घूमे नाचे न गाये भीड़ भट्ठी हंसें न ठिठोली सतरंगी बोतल भरे है भीतर शराब ! मुट्ठी में मैल नहीं सूखी तलैया सा सूखा है ओंठों का थूंक आँखों में ऊगा नकुओं में महका भमरों का चूसा गुलाब ! चंपा चमेली हांथों की खेली मेहदी रची है गीतों की दिल में अमुआं की डारी गाये कोयलिया बसवट में अरझी है कोरी किताब ! कौन सिये पुस्तैनी चीथड़े हवाओं में उड़ते पूंछें शिलालेख इतिहासी तहसील से, दूध भरी नदिया की धारा जरीबों ने सोखा सोने की चिड़िया क्यों लटकी है कील से, जारी खबर हैं कहते हैं सेमल की शाखों के बगुले धूल चांट जीवित है गैया खिरका की गूंगी मौन हैं बरेदी कौन दे जबाब ! मुट्ठी में मैल नहीं सूखी तलैया सा सूखा है ओंठों का थूंक आँखों में ऊगा नकुओं में महका भमरों का चूसा गुलाब ! चंपा चमेली हांथों की खेली मेहदी रची है गीतों की दिल में अमुआं की डारी गाये कोयलिया बसवट में अरझी है कोरी किताब !
भोलानाथ डॉराधा कृष्णन स्कूल के बगल में अन अच्.-७ कटनी रोड मैहर जिला सतना मध्य प्रदेश .भारत संपर्क – 8989139763
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जो व्यक्ति विषम परिस्तिथियों में भी जब उसका सब कुछ ख़त्म हो जाता है उम्मीद नहीं छोड़ता एक योद्धा होता है.
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साहित्यिक संध्या की सुन्दरतम नवरात्रि की पूर्व बेला में निवेदित कर रहा हूँ !आपकी प्रतिक्रियाएं ही इस चर्चा और पहल को सार्थक दिशाओं का सहित्यिक बिम्ब दिखाने में सक्षम होंगी !
और आवाहन करता हूँ "हिंदी साहित्य के केंद्रमें नवगीत" के सवर्धन और सशक्तिकरण के विविध आयामों से जुड़ने और सहभागिता निर्वहन हेतु !आपने लेख /और नवगीत पढ़ा मुझे बहुत खुश हो रही है मेरे युवा मित्रों की सुन्दर सोच /भाव बोध /और दृष्टि मेरे भारत माँ की आँचल की ठंडी ठंडी छाँव और सोंधी सोंधी मिटटी की खुशबु अपने गुमराह होते पुत्रों को सचेत करती हुई माँ भारती ममता का स्नेह व दुलार निछावर करने हेतु भाव बिह्वल माँ की करूँणा समझ पा रहे हैं और शनै शैने अपने कर्म पथ पर वापसी के लिए अपने क़दमों को गति देने को तत्...
मुट्ठी में मैल नहीं
सूखी तलैया सा
सूखा है
ओंठों का थूंक
आँखों में ऊगा
नकुओं में महका
भमरों का चूसा गुलाब !
चंपा चमेली हांथों की खेली
मेहदी रची है गीतों की
दिल में
अमुआं की डारी
गाये कोयलिया
बसवट में
अरझी है कोरी किताब !
बेरहमी लू में
सूरज की
किरणे
आगी उलीचें
सिसकती हवा
छांह बरगद निहारें,
नभ छूते
बादल को
भेजा है
न्योता वरुण ने
चुँधियाया
झाँक रहा पोखर दरारें,
आँतों की पत्थरी
पेटों को पची नहीं
नुस्खे न जाने
मूरख अनाड़ी
घिस घिस पिया खूब
घुमची का करु करु काढ़ा
बाहर न आया जुलाब !
मुट्ठी में मैल नहीं
सूखी तलैया सा
सूखा है
ओंठों का थूंक
आँखों में ऊगा
नकुओं में महका
भमरों का चूसा गुलाब !
चंपा चमेली हांथों की खेली
मेहदी रची है गीतों की
दिल में
अमुआं की डारी
गाये कोयलिया
बसवट में
अरझी है कोरी किताब !
भीड़
भगदड़ में टूटे
घुटने पसुरियों की पीड़ा
हंडिया के
अदहन सी
आँखों में छलकी,
मर्माहत
अंतहीन हादसों
की खबरें
कुर्बानी कदम कदम
लगती
कसइयों को हलकी,
मुस्कानें मंहगी
मुंह में सकेले
झूमे न घूमे
नाचे न गाये
भीड़ भट्ठी हंसें न ठिठोली
सतरंगी बोतल
भरे है भीतर शराब !
मुट्ठी में मैल नहीं
सूखी तलैया सा
सूखा है
ओंठों का थूंक
आँखों में ऊगा
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मेहदी रची है गीतों की
दिल में
अमुआं की डारी
गाये कोयलिया
बसवट में
अरझी है कोरी किताब !
कौन सिये
पुस्तैनी चीथड़े
हवाओं में उड़ते
पूंछें
शिलालेख
इतिहासी तहसील से,
दूध भरी
नदिया की धारा
जरीबों ने सोखा
सोने की
चिड़िया
क्यों लटकी है कील से,
जारी खबर हैं
कहते हैं सेमल की
शाखों के बगुले
धूल चांट
जीवित है गैया
खिरका की गूंगी
मौन हैं बरेदी कौन दे जबाब !
मुट्ठी में मैल नहीं
सूखी तलैया सा
सूखा है
ओंठों का थूंक
आँखों में ऊगा
नकुओं में महका
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दिल में
अमुआं की डारी
गाये कोयलिया
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