चिंता घुन की तरह हमें अन्दर से खा जाती है.यह हमें इतना कमज़ोर बना देती है की हम आसानी से टूट जाते हैं.चिंतित मनुष्य सकारात्मक रूप से सोंच नहीं पाता है.

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