परिस्तिथियाँ नहीं बल्कि हमारा नजरिया ही हमारे दुखों का कारण है.सकारात्मक सोंच हमें विकट परिस्तिथियों से उबार लेती है.जबकि नकारात्मक सोंच हमें ऐसे भंवर में फंसा देती है जहाँ से उबर पाना मुश्किल होता है.
जो व्यक्ति विषम परिस्तिथियों में भी जब उसका सब कुछ ख़त्म हो जाता है उम्मीद नहीं छोड़ता एक योद्धा होता है.
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